क्यूं परेशा हैं इंसा
यूं ही नहीं मिली ये जिंदगी,
जीलेे इसे शिद्दत से
कुछ पल जो मिले है उधार
गुजार इन्हे हंसते हुए
रों लिया है तू बहुत मुद्दत से
हर रोज, नया दिन, नई रोशनी
नई किरण, नया जीवन
हर रोज करनी है, जीने की
फिर वही मेहनत
हर रोज, कुछ पलो में
झलकेगा बुढापा
हर रोज, करना पड़ेगा
जीने का स्यापा
हर रोज मौत आएगी
दर पर यहां तेरे
हर रोज मुलाकात होगी
खुदा से मेरे
फिर क्यूं उदास है
राते काली देखकर
कुछ पल सो जा चैन से
कुछ मर गुजार मौन के
सुबह फिर से आएगी
नया जीवन, नए सपने
नई खुशियां, नए अपने
ख्वाहिशें नई लेकर
देव
बेहतरीन रचना 👌