कुछ तो है, जो छूट गया, कहीं बीती रात को।
यू ही नहीं भूल सकता हूं, तुझ संग बिताई रात को।।
तेरे फसाने, अफसाने, और तेरे गाने
अब भी सुनाई देते है।
तेरे लबों से, छलकती हसी से, अब भी मदहोश होते है।।
माना, तू गैर है, पर पराई कभी लगती क्यूं नहीं।
तेरे आगोश में, क्यूं आऊ, नींद कभी पूछती नहीं।।
मैं तो यू ही, कुछ भी बोलता रहता हूं
पर तू नज़रे झुकाए, यू बैठी है,
क्यूं, मुझे यूं लगता है तू भी जानता है राज, उस बीती रात का।
देव