ऑफिस की फाइल के पन्नों को पलटते हुए
चश्मे को आंखो के बीच एडजस्ट करते हुए
तिरछी नज़रों से कभी नजर मिलाते हुए
मिला था मैं आज उससे, काफी की चुस्की लेते हुए
आज भी, चेहरे पर वहीं रौनक रहती है
मुस्कुराती है, तो हल्की से हंसी निकलती है
आज भी, चलते हुए थम जाते है पांव
जब भी वो लंबी आह लेती है
कौन कहता है, उमर बड़ने से
उमर बड जाती है
वो तो हर साल, और निखर जाती है
और बिजलियां गिराती है
देव
बहुत खूब