बाते नींव के पत्थर की..

खुद के बुलंदी छूने को,
मुझे नींव का पत्थर बनाते हो
सालो से दफन हूं जमीन में
पूछने भी नहीं आते हो

अपनी दीवारों पर हर साल
रंग रोगन करवाते हो
मेरा नाम भी अक्सर
जिक्र में भूल जाते हो

क्यूं, बनूं नींव का पत्थर
क्या मिलेगा मुझको, बताओ
क्यूं नहीं में गुंबद पर
बन के ताज बैठ जाऊ

वक़्त बदला, बदलना है अब
मुझे भी नियति मेरी
कब तक बस किताबो में करोगे
बाते नींव के पत्थर की

देव

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