ना घर में टीवी, ना हाथ में मोबाइल
ना खिलौनों की भरमार है
नटखट सी अठखेलियों में गुजरता है दिन
रात में सपने अपार है
ना फ़िक्र कुछ खोने की, बस पाने की चिंता
समझते है जिंदगी को करीब से
उम्मीद इनकी कायम है
आज एक और दिन गुजर जाए
बस, दो वक़्त का खाना मिल जाए
देख ले अपनों को चैन से सोते हुए
यही इनके जेहन में आते विचार है
बदन पर चंद कपड़े, पर खुशी अपार है
गुजारते है वक़्त, साथ में प्यार से, समझते है दिन चार है
हां, ये अमीर नहीं, जिनके पास बंगला है कार है
जिन्हे हम गरीब कहते है,
उनकी अमीरी देख आए ये विचार है।
देव