मेरे लब्जों को, वो ही पड़ते है,
जो मुझे समझते है,
हर कोई कायल हो,
ये उम्मीद नहीं करता,
हां, मैं हर किसी के लिए नहीं लिखता,
जो हुस्न के नशे में,
आइने तराश बैठे है,
जो हुस्न के नशे में,
आइना तराश बैठे है,
उस आइने के टुकड़ों को हूं बटोरता
हां, मैं हर किसी के लिए नहीं लिखता,
खुदगर्ज, काफी है जमाने में,
छुरा, घोपने को तैयार, है यारो के,
खुदगर्ज, काफी है जमाने में,
छुरा, घोपने को तैयार, है यारो के,
यूं काफिरों के किस्से नहीं परोसता,
हां, मैं हर किसी के लिए नहीं लिखता,
बस एक तारीफ ही काफी है,
हौसला अफजाई को मेरे,
बस एक तारीफ ही काफी है,
हौसला अफजाई को मेरे,
मंहगे इनाम की, मैं आस नहीं करता,
हां, मैं हर किसी के लिए नहीं लिखता,
देव
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