शायद, ख्वाब पूरा कर डाला

मेरे छिपे पन्नों पर, काबिज हो,
एक एक पन्ना वो पड़ती रही,
मैं बस देखता रह, वो हस्ती रही।।

पड़ती क्यूं ना, हक था उसका,
उसी की अदा पर,
लिखी थी वो कविता,
बस, उसकी नजरो से बचा,
लिखता गया,
और आज पकड़ा गया,

थोड़ा डर, थोड़ी खुशी,
उसके जवाब की बेसब्री,
कुछ नखरे दिखा, उसने बोल डाला,
ख्वाहिश थी जो कभी,
शायद, ख्वाब पूरा कर डाला।।

देव

Leave a Reply