मंजिल कैसे पाओगे

रोक दो काफिले दर्द के, आगे क्यूं कर ले जाओगे,
दर्द बांटोगे, गर तो, दर्द ही पाओगे।

बहुत खुदगर्जी, हो गई, अब तो सुधर जाओ,
नफरतें दिल में रखोगे, तो प्यार कैसे पाओगे।

चिराग भी बुझते है, दिखा कर रास्ता इक दिन,
आंखे जो ना खोलोगे, तो मंजिल कैसे पाओगे।

देव

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