वो अपने जज्बात
मुझसे छिपाना चाहती थी,
जो नहीं बता सकती थी किसी को
वही बात मुझसे करना चाहती थी,
अपने अल्फजो को, बड़े
नाप तोल कर बोल रही थी वो,
आज, फिर एक बार, अपना
दर्द बयां कर रही थी वो,
वैसे तो कह रही थी, अब,
जख्म भर चुके है,
दर्द नहीं होता है
पागल, इतना भी नहीं समझती है,
आदमियों के भी दिल होता है,
मुझे भी टीज सी उठती है,
जब तुम्हारा कल याद करता हूं,
अब तो आंखे भी भर आती है,
अक्सर, जब तुम्हारी वो,
तस्वीर देखता हूं,
दिखने में तो वो ,
खुश बहुत लगती है,
मगर उसके अल्फाजो में,
उसका दर्द झलक रहा था,
टूटे हुए सपनों का,
ढेर दिख रहा था,
वो आंखो में कटी रातें,
वो रातों में बहे आंसू,
थामे कलेजे के टुकड़े को,
खुद से करती रही, जो बाते,
वो दिखाने के लिए ली,
सुबह की अंगड़ाई,
वो रसोई में, खोए हुए,
जब अंगुली जलाई,
वो सूना दिन,
कहने को अपना, मगर
अनजान, घर में बीती शामें,
उनके कभी कभी,
घर आने पर,
फिर वही घिसी पिटी बातें,
अपनों को दिए उलाहने,
सपनो को तोडते बहाने,
और प्यार, भूल ही गई थी वो,
प्यार होता क्या है,
कोई ऐसा भी होता है,
जिसके लिए दिल रोता है,
या बस ये सब किताबों में होता है,
बस, बहुत हुआ, अब,
और ना सहा उसने,
बेडियों को तोड़, आंगन
के बाहर पग रखा उसने,
अपनों की ही बातों को,
काफी सहा उसने,
कर फिर कभी,
उस शख्स को,
ना देखा उसने,
अनजान शहर में,
घरौंदा किया उसने,
मगर, बहुत कुछ टूट चुका था,
उस फिर संवारा उसने,
बटोर कर, कुछ ख्वाब को,
जीवन में उतारा उसने,
एक नए रूप के साथ,
नई पहचान भी ली,
दफ़न कर, दर्द भरी रातें,
चेहरे पर है हंसी खिली,
मगर, आज भी कुछ,
टीज सी उठती है,
अब वो प्यार से डरती है,
हां, अब वो प्यार से डरती है।।
देव