सही और ग़लत

सही और ग़लत के बीच में,
अटकी है सोच कहीं,
शायद, भ्रम ही है,
जो अक्सर गुमराह करता है,

मोहब्बत और नफ़रत,
बस, सुई भर की है दूरी,
बस, दिल ही है,
जो कुछ करने नहीं देता है,

बेकरारी और लाचारी,
दोनों कब है साथ में,
बस, वक़्त ही तो है,
जो साथ नहीं देता है।।

देव

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