अपनी ख्वाहिशों का एक,
नन्हा सा पौधा, लगाया है,
सींचती हूं, रोज उसे,
अपने अरमानों से।
वक़्त अक्सर, गुजारती हूं,
बातों में उससे,
दर्द भुला अपने,
खुशियों की खाद देती हूं।
खुदगर्जी के अंधेडे,
उजाड़ ना दे चमन मेरा,
नजरो से जमाने की,
बचाती हूं हर कोपल को।
कब खिलेंगे फूल,
महकेगा चमन मेरा,
इंतेज़ार में, बहार के,
गुजारती हूं, बचा वक़्त अपना।।
देव