अंतर्मन से मेरा द्वंद चल रहा था,
खुदा है या नहीं, जवाब ढूंढ रहा था,
कहने को तो, अहम ब्रह्मस्मी कहते है,
और में ही ब्रह्म हूं, तो ढूंढ क्या रहा था,
शायद, मैंने उसे अपने में ही, खो दिया था,
जो होना था मुझे, मैं नहीं रहा था,
ना खुद पर यकीं, ना उस पर यकीं था,
ख्वाहिशों का पुलंदा, ले, भटक रहा था,
बेखुदा को खुदा, खुदाई को भुला,
ना जाने कहां कहां, मथा टेक रहा था,
मगर अब समझा हूं, मै ही वो, वो ही मै हूं,
फिर से उससे, इश्क़ कर रहा हूं।।
देव