लगता है उसके आज, जुल्फे अपनी खोली है।

मौसम तो गर्मी का है, पर ये सर्द हवाएं कैसी है,
लगता है उसके आज, जुल्फे अपनी खोली है।

चांद को ढूंढा आसमां में, आंख मिचौली खेली है,
उसके नूर से मेरे जहां में, रोशनी कैसी फैली है।

ना फूल है यहां, ना बगिया, कैसे खुशबू ये फैली है,
उसकी सौंधी सोंधी सुगंध से, मेरी बगिया महकी है।

ना सोचा कुछ, ना पड़ पाया, फिर कैसे नज़्म ये निकली है,
उसकी सूरत बस सोच सोच कर, हाथो ने कविता ये लिख दी है।।

देव

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