दादाजी

One of my friend has lost her Dadaji (Grandfather), and this is based on her experience, when she opened up box he had, that was an emotional moment…

दादा, कोई दादाजी कहता है
घर में बाहर, चबूतरे पर खाट में,
आते जाते लोगो को, सुबह से शाम
करते रहते थे राम राम

दादाजी, पूरा मोहल्ला जानता था उन्हें
और वो, पूरे मोहल्ले को,
जाने कब वक़्त बीत जाता था
खबरे सुनते हुए, यह की वहां की

पर अब, वो खाट खाली है,
यूं खबरों के सुनने वालो का मंजर
लगा है मेरे घर के बाहर
विश्वास नहीं होता, ऐसा भी होता है
आस पास की पांच गलियों तक
लोगो ने रास्ता रोका है
सिर्फ याद में, क्यूं की
आज तीये की बैठक है

इन्हीं बीच, मां ने एक संदूक
बड़ा पुराना सा, ला कर दिया,
बेटा, ये दादाजी का है, कहते थे
इसमें पोती को सम्हाला है

मैंने बड़े असमंजस से उसे टटोला
धीरे से उसे खोला
ऊपर कुछ पुराने से कपड़े दिखे
अरे ये तो वही है, जो कभी बचपन की
मेरी फोटो में, थे पहने दिखे

उसके नीचे एक किताब भी थी
जिसपे हिंदी में कक्षा ५ था लिखा
याद आया, दादाजी ने ही, मुझे
था हिंदी समझने का ज्ञान दिया

अरे ये क्या, ये तो वही पेन है
जिससे लिखी थी मैंने दसवीं परीक्षा कभी
और वो कंपास को टूट गया था
बारहवी के इम्तेहान में

पर सबसे ज्यादा, अहसास तब आया
जब मेरी पहली नौकरी का
विजिटिंग कार्ड और पहली तनख्वाह का
पहला सौ का नोट, उनकी डायरी में पाया

उसी डायरी में मेरी हर जीत लिखी थी
मेरे सुख, मेरी तकलीफ लिखी थी
मैं जीन खुशियों से रही अनभिज्ञ
सब दादाजी ने संजो के रखी थी

बस, अफसोस की अब दादाजी ना रहे
अब कौन उस खाट पर बैठेगा
कौन सबको राम राम कहेगा

देव

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