अब मुड़कर देखना तुझे, फितरत में हैं नहीं।।

तेरा जिक्र भी अब, मेरी बातों में नहीं होता।
तू अब, नहीं आती, मेरे ख्यालों में।।

वक़्त, जो बिताया साथ, मानता हूं यादगार है
पर ज़ख्मो ने मिटा दी, हर निशानी तेरी।।

अब, नहीं जागता हूं, रातों में में अपनी।
अब, नहीं परवाह, मुझे जमाने की रति भर भी।।

देव, उठ गया, चल दिया, अब नई राह पे।
अब मुड़कर देखना तुझे, फितरत में हैं नहीं।।

देव

Leave a Reply