बंधन, रेशम के धागे का
प्यार के अल्फ़ाज़ का
परिवार के प्यार का
बहना के इंतजार का
भाई की फटकार का
मां के दुलार का
पिताजी की फटकार का
गुरुजी की डांट का
शिष्यों के समर्पण का
यारो के साथ का
अपनों के विश्वास का
तुम ही बताओ
मैं कैसे तोड़ दू
कैसे मैं ये सारे रिश्ते छोड़ दूं
मैं बना हूं, मैं
जिसे तुम चाहते हो
मेरे खयालातों की
इज्जत कर पाते हो
मेरे लिए, अपना जीवन
कुर्बान करने की बात करते हो
और पल में मुझसे मुझको
जुदा करने का वचन लेते हो
नहीं, ये मुश्किल नहीं
पर नामुमकिन जरूर है
जिस बहन ने बंधी है राखी मेरे
उसी बहन का गुरूर हूं
हां, बनना चाहता हूं तुम्हारा
और पाना चाहता हूं तुम्हे
पर इतना भी खुदगर्ज नहीं हूं
कि राखी बांधी है इन हाथो में जिसने
उसे बीच राहों में छोड़ दू
देव