कभी बेपरवाह सी थी,
मगर बेकार सी थी,
शामों में महफ़िल थी,
रूह तन्हा थी,
रात गुलज़ार थी,
ख्वाब नदारद से थे,
लबों पर हंसी थी,
दिल में खुशी ना थी,
रास्ते खुशगुवानर थे,
मंजिल का पता ना था,
अब बस तुम हो,
तुम हो तो है, जिंदगी।।
देव
कभी बेपरवाह सी थी,
मगर बेकार सी थी,
शामों में महफ़िल थी,
रूह तन्हा थी,
रात गुलज़ार थी,
ख्वाब नदारद से थे,
लबों पर हंसी थी,
दिल में खुशी ना थी,
रास्ते खुशगुवानर थे,
मंजिल का पता ना था,
अब बस तुम हो,
तुम हो तो है, जिंदगी।।
देव